biography of suryakant tripathi nirala in hindi > सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। हिंदी साहित्य में उनका स्थान विशेष महत्व रखता है, और वे छायावादी कवियों में प्रमुख हैं। निराला केवल कवि ही नहीं थे, बल्कि उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार और संपादक भी थे। हालांकि, वे अपनी कविताओं के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध हुए और उन्होंने कई चित्र भी बनाए।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को प्रयोगवाद, प्रगतिवाद, और नई कविता का जनक भी माना जाता है। उनकी कविताएँ आज भी पढ़ी जाती हैं और उनका काम साहित्यिक जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखता है
Table of Contents
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा | Suryakant Tripathi Nirala Education
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 1899 में बंगाल की महेश दयाल रियासत के मोतीपुर जिले में हुआ था। उनके पिता, पंडित रामसहाय, मूलतः उन्नाव जिले के डकला गाँव के निवासी थे और बंगाल में सफाई की नौकरी करते थे। जब सूर्यकांत त्रिपाठी निराला केवल तीन वर्ष के थे, तब उनकी माँ का निधन हो गया और बाद में उनके पिता का भी निधन हो गया।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय गाँव से ही प्राप्त हुई थी, जिसमें उनकी शिक्षा बंगाली माध्यम में हुई थी। यहीं से उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने भागलपुर में हिंदी, अंग्रेजी, और संस्कृत का अध्ययन किया। कुछ समय बाद, वे अपने गाँव डकला वापस आ गए और 21 साल की उम्र में उनका विवाह मनोरमा देवी से हुआ। उनकी पत्नी से ही प्रेरित होकर उन्होंने जयंती कविताएं लिखीं, लेकिन 20 वर्ष की आयु में उनकी पत्नी का भी निधन हो गया
Suryakant Tripathi Nirala साहित्यिक जीवन एवं काव्य विशेषता
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपने जीवन में कई कविताएँ, उपन्यास और निबंध लिखे। उनकी पहली कविता “जन्मभूमि” 1920 में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद, 1923 में उनका कविता संग्रह “अनामिका” प्रकाशित हुआ, जो बंगाली भाषा में लिखा गया था। निराला जी ने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्हें प्रमुख प्रवर्तक माना जाता है।
निराला जी ने अपने समकालीन कवियों से अलग रहते हुए कविता में कल्पना का उपयोग बहुत कम किया। उन्होंने अपने लेखन में यथार्थ को प्रमुखता दी और उसकी सच्चाई को प्रभावी ढंग से चित्रित किया। इसके साथ ही, मासिक पत्रिका “सरस्वती” के प्रकाशन में भी उनकी भूमिका रही
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की रचनाएं
- अनामिका (1923)
- परिमल (1930)
- गीतिका (1936)
- अनामिका द्वितीय (1939)
- तुलसीदास (1939)
- गोकुल (1942)
- माता (1943)
- बेला (1946)
- नये पत्ते (1946)
- अर्चना (1950)
- राना (1953)
- गीत गुंज (1954)
- अकली (1957)
इन रचनाओं के माध्यम से निराला जी ने हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया और उनकी कविताएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच पढ़ी जाती हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला उपन्यास
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के उपन्यासों में शामिल हैं:
- चमेली (1934)
- इंदुलेखा (1935)
- लिली (1934)
- सखी (1935)
- स्कूल की बीवी (1941)
- देवी (1948)
- चमार (1945)
- हल्का (1933)
- अफसर (1931)
- निरुपमा (1936)
- कुल्ली (1938-39)
- गुवाहाटी (1938-39)
- चोटी की पकड़ (1946)
- कार्य करना (1950)
Kavi Nirala ka janm hua tha
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 21 सितंबर 1899 को बंगाल के हुगली जिले के कंदी नामक गाँव में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि और लेखक थे। उनका साहित्य समाजिक और राजनीतिक विषयों पर आधारित था, और उन्होंने अपने समय के विचारों और भावनाओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया
Suryakant Tripathi Nirala Awards
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को उनकी साहित्यिक कृतियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्हें विशेष रूप से 1964 में साहित्य अकादमी पुरस्कार उनकी काव्य रचनाओं के लिए मिला। इसी वर्ष, ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी
सम्मानित किया गया था, जो हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देता है। निराला जी अपनी साहित्यिक रचनाओं, मानवता के प्रति दृष्टिकोण और सामाजिक संदर्भों में योगदान के लिए प्रसिद्ध थे। अपने जीवनकाल में, उन्होंने कई सरकारी और औपचारिक पुरस्कार भी प्राप्त किए, जो उनके साहित्यिक योगदान को मान्यता देते हैं
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का निधन 15 अक्टूबर 1961 को हुआ था। जीवन के अंतिम वर्षों में वे गरीबी और विभिन्न समस्याओं से जूझते रहे। बावजूद इसके, उनके साहित्यिक योगदान ने उन्हें भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
निराला जी की रचनाओं ने हिंदी साहित्य में विविधता और गहराई प्रदान की, और उनके काम ने हिंदी साहित्य को नई दिशा और प्रेरणा दी। उनके साहित्यिक योगदान को हमेशा सराहा जाएगा और उनकी रचनाएँ आज भी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं
Nirala kavya ka darshnik aadhar hai
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताओं का आधार मुख्यतः मानवीय संवेदनाओं और संघर्षों पर है। उनकी रचनाओं में न केवल व्यक्तिगत अनुभवों की गहराई है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक चेतना, प्राकृतिक सौंदर्य, और संवेदनात्मक अनुभव भी प्रमुखता से व्यक्त किए गए हैं। निराला जी की कविताएँ जीवन की जटिलताओं, सामाजिक मुद्दों, और प्राकृतिक सौंदर्य को प्रभावी ढंग से चित्रित करती हैं, जिससे वे हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
Nirala kis baat ke kavi hai
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को मुख्यतः मानवी संवेदनाओं और सामाजिक मुद्दों के कवि के रूप में जाना जाता है। उनकी कविताओं में मानव जीवन की जटिलताओं, दुखों और पीड़ाओं को गहराई से व्यक्त किया गया है। वे अपनी कविताओं के माध्यम से मानव के अंदर छुपे संघर्ष और दुखों को उजागर करते हैं।
निराला ने सामाजिक और राजनीतिक चेतना को भी अपने काव्य में प्रमुखता दी है। उनकी कविताएँ समाज की समस्याओं जैसे असमानता, जातिवाद, और अन्याय को उजागर करती हैं। इसके साथ ही, उन्होंने आधुनिकता और राष्ट्रवाद के विचारों को भी अपनी कविताओं में शामिल किया है, जो मृत्यु, जीवन और अस्तित्व के संबंधों पर विचार करते हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य और संवेदनात्मक अनुभव भी निराला की कविताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उन्होंने प्रकृति के सुंदरता और उसके विभिन्न पहलुओं को अपनी कविताओं में बखूबी प्रस्तुत किया है, जिससे भावनात्मक अनुभवों को गहराई से व्यक्त किया जा सके
biography of suryakant tripathi nirala in hindi final word
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